जलियांवाला बाग हत्याकांड: भारत की आजादी के इतिहास का काला दिन, नरसंहार को हुए आज100 साल से ज्यादा

तारीख 13 अप्रैल साल 1919 भारत और भारतीयों के लिए वो भयावह दिन जिसे आज भी याद करने पर रोंगटें खड़े हो जाते है। जलियांवाला बाग़ की वो घटना जब अंग्रेजी राज़ का क्रूर और दमनकारी रूप दिखा जिसे भूले नहीं भुलाया जा सकता है। उसी जलियांवाला बाग नरसंहार को आज100 साल से ज्यादा बीत चुके हैं। यह घटना इतनी भयावह और क्रूर थी कि आज भी सोचने पर भय से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उस नरसंहार का दृश्य कैसा रहा होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

निहत्‍थे मासूमों का हुआ था कत्लेआम
जलियांवाला बाग भारत की आजादी के इतिहास की वो दुखद घटना है, जो 13 अप्रैल 1919 को घटना घटी थी। घटना में पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित जलियांवाला बाग में निहत्‍थे मासूमों का भयानक कत्‍लेआम हुआ था। अंग्रेजों ने निहत्‍थे और मासूम भारतीयों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं। यह घटना अमृतसर हत्याकांड के रूप में भी जाना जाती है। इस नरसंहार को आज 100 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन आज भी इसके घाव हर भारतीय के दिलों में ताजे से लगते हैं। इस दिन को भारत के इतिहास की काली घटना के रूप में याद किया जाता है।

क्या था जलियांवाला बाग़ नरसंहार
दरअसल भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा रोलेट एक्ट लेकर आई। इस एक्ट के कारण ही नरसंहार की शुरुआत हुई। इस एक्‍ट को जलियांवाला बाग की घटना से करीब एक महीने पहले 8 मार्च को ब्रिटिश हकूमत ने पारित किया था। इस अधिनियम को लेकर पंजाब सहित पूरे भारत में विरोध शुरू हुआ। विरोध प्रदर्शन के लिए अमृतसर में, जलियांवाला बाग में प्रदर्शनकारियों का एक समूह इकट्ठा हुआ। ये एक सार्वजनिक बाग था, जहां रोलेट एक्ट के खिलाफ शांति से विरोध किया जा रहा था और इस विरोध प्रदर्शन में पुरुष, महिलाओं के साथ बच्चे भी मौजूद थे। तभी जनरल रेजिनल्ड डायर के नेतृत्व में सैनिकों ने जलियांवाला बाग में प्रवेश किया और एकमात्र निकासी द्वार को बंद कर दिया। इसके बाद डायर ने सैनिकों को वहां मौजूद निहत्‍थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। कहा जाता है कि ये गोलीबारी तब तक जारी रही, जब तक कि सैनिकों के गोला-बारूद खत्म नहीं हो गए। इस घटना में कितने लोग शहीद हुए, इसका आज तक पता नहीं। लेकिन माना जाता है करीब 400 से 1,000 लोग मारे गए और 1,200 से अधिक घायल हुए।

क्या था रौलेट एक्ट
इस अधिनियम के जरिये अंग्रेजी सरकार के पास भारतीयों को बिना मुकदमा चलाये दो साल तक जेल में बंद रखने का अधिकार था। इस कानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था। राजद्रोह के मुकदमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया गया था, जिसमें जजों को बिना जूरी की सहायता से सुनवाई करने का अधिकार प्राप्त हो गया था। मुकदमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं था। इसके तहत ब्रिटिश सरकार को ये अधिकार मिल गया था कि वो बलपूर्वक प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार छीनकर किसी भी व्‍यक्ति को जेल की सजा दे सकती थी या उसे देश से निष्‍कासित कर सकती थी। रोलेट एक्‍ट को काला कानून भी कहा जाता है।

जनरल डायर का था आदेश
पूरे देश में रौलेट एक्ट के विरोध में प्रदर्शन किए जा रहे थे। बैसाखी के ही दिन, 13 अप्रैल 1919 को समूचे देश के साथ अमृतसर के जलियांवाला बाग में भी रौलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्वक प्रदर्शन के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए थे। इस दौरान ही अचानक वहां दल-बल के साथ अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर पहुंच गया, जिसने कोई भी चेतावनी दिए बिना ही निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोली चलाने का आदेश दे दिया। बाहर निकलने के रास्ते बंद कर दिए गए थे। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर से उधर भाग रहे थे, कई कुएं में भी कूद गए लेकिन फिर भी जान बचाने में नाकाम रहे। इस भयावह और क्रूर घटना से जलियांवाला बाग शवों से पट गया था, हर तरफ सिर्फ लाशों के ढेर थे। इस घटना में एक हजार से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और भारी संख्या में लोग घायल भी हुए थे।

वर्षों बाद ऊधम सिंह ने लिया बदला
जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए नरसंहार का बदला बाद में ऊधम सिंह ने लिया। तारीख थी 13 मार्च 1940, जब ऊधम सिंह ने माइकल डायर के भाषण में जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिक्र होते ही अपनी किताब में छुपाई हुई रिवोल्वर से गोलियों का वर्षा कर दी।

आज भी दीवारों पर मौजूद हैं गोलियों के निशान
आज इस घटना को पूरे 104 साल बीत चुके हैं, लेकिन इसके जख्‍म आज भी भरे नहीं हैं। ब्रिटिश सरकार के इस भयानक कारनामे की का सबूत आज भी दीवारों पर मौजूद है। ब्रिटिश सैनिकों ने जब गोलीबारी की थी तो तमाम गोलियां दीवारों में जा घुसी थीं। उन गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं। इस हत्‍याकांड को लेकर आजतक ब्रिटेन की ओर से कोई माफी या दुख नहीं जताया गया। हालांकि, 1997 में भारत दौरे पर आईं महारानी एलिजाबेथ द्वितीय जलियांवाला बाग स्मारक पुहंची थी और उन्होंने पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी थी। साथ ही इस घटना को विचलित करने वाला बताते हुए दुख जाहिर किया था।

Mehak Bharti
Author: Mehak Bharti

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